Financial Tips: होम, पर्सनल या किसी अन्य तरह का लोन लेते समय इंश्योरेंस लेने को मजबूर करना इंश्योरेंस की मिस सेलिंग कहलाती है। कितने तरह से होती है यह, किस तरह आप इससे बच सकते हैं। एक व्यक्ति ने हाल में एक निजी बैंक से होम लोन लिया। बैंक ने उन्हें लोन तो दे दिया, लेकिन साथ में होम लोन इंश्योरेंस भी थमा दिया। बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर ने ऐसा समझाया कि यह बीमा लेना बहुत जरूरी है।
यानी इस तरह से दबाव बनाया गया कि होम लोन तभी मिल सकता है, जब वे इस प्रॉपर्टी पर बीमा लेंगे, जबकि उक्त व्यक्ति के लिए ऐसा बीमा लेना जरूरी नहीं था, वे चाहते तो कोई अच्छी टर्म पॉलिसी लेकर अपने मकान को इंश्योर कर सकते थे। इसे नियामकों की भाषा में इंश्योरेंस की मिस सेलिंग कहते हैं। यह भारत में आम है और अब बीमा नियामक इरडाई इसे लेकर काफी सख्ती बरत रहा है। कितने तरह से होती है मिस सेलिंग और आप किस तरह से ऐसी मिस सेलिंग से बच सकते हैं? आइए इसे बारीकी से समझते हैं..
लोन के साथ बीमा
अक्सर लोगों को होम लोन, पर्सनल लोन आदि कई तरह के लोन के साथ टर्म, प्रॉपर्टी या कोई अन्य इंश्योरेंस भी लेने को मजबूर किया जाता है। जो लोग लोन लेते हैं, उनके सामने जब इस तरह की शर्त रखी जाती है, तो उन्हें लगता है कि इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। जागरूकता के अभाव में वे इसका विरोध नहीं कर पाते हैं, जबकि उनके पास पूरा अधिकार है कि वे इस तरह की शर्त का विरोध करें और कहें कि उन्हें लोन तो चाहिए लेकिन साथ में कोई बीमा पॉलिसी नहीं चाहिए। बीमा पॉलिसी जब लेने की जरूरत होगी तो वे अलग से लेंगे। असल में बैंक कर्मचारियों में बीमा उत्पाद बेचने को लेकर गलाकाट प्रतिस्पर्धा होती है। कई बैंक इस पर जोर देते हैं कि कोई भी लोन तभी मंजूर किया जाए, जब ग्राहक उसके साथ कोई बीमा पॉलिसी खरीदने को तैयार होता है।
पॉलिसी को एफडी की तरह दिखाना
बैंकों के रिलेशनशिप मैनेजर अकसर बीमा पॉलिसियों को हाई रिटर्न वाले एफडी की तरह पेश करते हैं। वे आपको बताएंगे कि इतने साल तक पैसा जमा करें और इतने साल के बाद आपको इतनी रकम मिल जाएगी। इस तरह वे ग्राहकों को गुमराह करते हैं। असल में कई ऐसी योजनाएं 5-10 साल की होती हैं, जिसे रिटर्न के साधन की तरह दिखाया जा सकता है।
ऐसी ज्यादातर योजनाएं LIP होती हैं। ULIP यानी यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लैन ऐसे प्रोडक्ट्स होते हैं, जिनमें निवेश और कवर, दोनों तरह के फायदे ऑफर किए जाते हैं, ULIPs में लॉन्ग टर्म गोल्स या भविष्य की बड़ी जरूरतों के लिए इंवेस्टमेंट के साथ-साथ किसी अनहोनी की स्थिति में फैमिली के फाइनेंशियल प्रोटेक्शन के लिए लाइफ कवर का विकल्प होता है। इसमें ग्राहकों को बीमा कवरेज के साथ इक्विटी और बॉन्ड में निवेश, दोनों का विकल्प मिलता है।
लेकिन यहां इक्विटी का मतलब है कि वे निवेश का एक हिस्सा शेयर बाजार में जाता है, इसलिए निवेश पर गिरावट का जोखिम भी होता है। जैसे किसी प्लैन ने पिछले 5 साल में 20 प्रतिशत रिटर्न दिया हो, तो जरूरी नहीं कि अगले 5 साल में भी वह 20 प्रतिशत रिटर्न देगा। भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) लगातार इस बात का प्रयास कर रहा है कि इस तरह की मिस सेलिंग रूके।
कैसे पहचानें
- अगर आपने गहन रिसर्च करके कोई पॉलिसी खरीदने का डिसीजन बनाया है, जैसे कि आपने कोई प्योर टर्म पॉलिसी लेने का मन बनाया है और एजेंट या बैंक कर्मी आपको कोई यूलिप या अन्य पॉलिसी लेने पर जोर दे रहा हो तो ऐसे में तुरंत सचेत हो जाएं। ध्यान रखें कि कोई भी भरोसेमंद एजेंट कोई दूसरी पॉलिसी लेने के लिए आप पर दबाव नहीं बना सकता है। वह बस सलाह दे सकता है।
- अगर कोई किसी निवेश से जुड़े बीमा पॉलिसी से बहुत ज्यादा या असंभव टाइप का रिटर्न दिलाने का वादा कर रहा हो तो भी सचेत हो जाएं। पक्का मान लें कि इसमें कोई ना कोई झोल है।
- पॉलिसी टर्म अगर बहुत कंफ्यूजिंग हो तो भी आपको सचेत हो जाने की जरूरत है। बीमा एजेंट का यह काम है कि वह आपको पॉलिसी का टर्म आसान भाषा में समझाए। अगर वह नहीं समझा पा रहा या समझाना नहीं चाह रहा तो आपको सचेत हो जाने की जरूरत है।
- सभी दस्तावेज और आप जो फॉर्म भर रहे हैं, उसको गहराई से देखें। जो कुछ भी एजेंट बता रहा है फॉर्म में अगर उससे कुछ अलग ही दिखता है तो तुरंत ही सचेत हो जाएं और उस बारे में सवाल करें।
- आपका वित्तीय लक्ष्य क्या है, अभी कितना बीमा कवरेज है और कितना चाहते हैं, कितना जोखिम ले सकते हैं? पहले इसके बारे में खुद आकलन कर लें। अब इसके बाद अगर बीमा एजेंट इसके बारे में पूंछता है, तो उसे साफ-साफ बता दें। लेकिन अगर बीमा एजेंट को इसे जानने में कोई रूचि नहीं है और वह बस कोई प्लैन चिकाने पर ही जोर दे रहा है तो भी आपको सचेत हो जाना चाहिए।
क्या हो सावधानी
- बीमा का मतलब सिर्फ बीमा है, उसे निवेश का साधन न बनाएं। हो सके तो प्योर टर्म पॉलिसी ही लें। टर्म पॉलिसी की वास्तव में असल बीमा पॉलिसी है। इसमें आपको बहुत कम रकम में ज्यादा लाइफ कवर मिलता है।
- बीमा एजेंट से हर तरह के सवाल पूंछने में संकोच ना करें, जब तक आप पूरी तरह से संतुष्ट न हो जाएं, कोई भी पॉलिसी ना खरीदें।
- बीमा एजेंट अगर किसी पॉलिसी में अच्छा रिटर्न दिलाने का वादा करता है तो उससे इस दावे के बारे में लिखित में प्रमाण जरूर लें।
- ऐसी पेशकश से सतर्क रहें, जो इतनी अच्छी लगती है कि उन पर भरोसा ही न होता हो। ऐसे में बीमा कंपनी को फोन करें और पॉलिसी की प्रामाणिकता की पृष्टि करें।
- हो सके तो सीधे बीमा कंपनियों, रजिस्टर्ड इंटरमीडियरी या एजेंटों से पॉलिसी खरीदें।
- पॉलिसी जारी किए जाने से पहले और बाद के वेरिफिकेशन कॉल को अवश्य उठाएं।
इरडाई बीमा नहीं बेचता
आम लोगों और पॉलिसी होल्डर्स को अनजान लोगों के कॉल आते हैं, जिसमें वे खुद को इरडाई के प्रतिनिधि या अधिकारी बताते हैं। ग्राहकों को लुभावने ऑफर्स की पेशकश की जाती है। वह बीमा लेनदेन विभाग, आरबीआई या दूसरी एजेंसियों का नाम लेकर गुमराह करते हैं। ऐसे ठगी करने वाले जिन ऑफर्स की पेशकश करते हैं, उसमें ज्यादा रिटर्न या सुविधा और फायदे की बातचीत की जाती है।
इसमें वे अनक्लेम्ड बोनस, एजेंसी के कमीशन, निवेश राशि, ग्रोथ अमाउंट को वापस करने का ऑफर देते हैं। इसके एवज में वे ग्राहकों को पहले कुछ अमाउंट जमा करने को कहते हैं और उनसे कुछ फीस मांगी जाती है। यह असल में इंश्योरेंस के नाम पर ठगी का एक तरीका है। इससे भी आपको सावधान रहना होगा। इरडाई ने कई बार यह साफ तौर पर कहा है कि वह किी भी इंश्योरेंस या फाइनेंशियल प्रोडक्ट की बिक्री नहीं करते हैं।
ऐसे फंसते हैं सीनियर सिटीजन
सीनियर सिटीजन को मिस सेलिंग आसान होती है। अकसर लोग रिटायरमेंट के बाद हासिल बड़ी रकम लोग रिटायरमेंट के बाद हासिल बड़ी रकम बैंक में एफडी करने के लिए जाते हैं तो साथ में उन्हें कोई यूलिप या कोई कथित रूप से रिटर्न गारंटी वाली बीमा योजनाएं भी बेच दी जाती हैं। इन योजनाओं की शर्तों और रिस्क के बारे में सीनियर सिटीजन को ना तो जानकारी होती है और न ही रिलेशनशिप मैनेजर उन्हें बताते हैं।
रिटायर्ड लोगों को एनुइटी पॉलिसी की जरूरत होती है, लेकिन उन्हें इसके बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए कि वे क्या पॉलिसी ले रहे हैं और उसमें कितना रिटर्न मिलेगा या क्या जोखिम हो सकता है। कई बार खुद बीमा एजेंट भी ऐसी मिस सेलिंग करते हैं। जैसे बीमा एजेंट अक्सर लोगों को प्योर टर्म पॉलिसी के बारे में नहीं बताते हैं। अगर कोई पूछता भी है तो उसे यह कहकर हतोत्साहित करते हैं कि इसमें तो कुछ मिलता नहीं है।
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